भावेश जांगिड़
टेलीग्राफ टाइम्स
2 फरवरी
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2025 में मशहूर फिल्म निर्देशक इम्तियाज अली ने अपनी फिल्मों, संगीत और उनकी निर्माण प्रक्रिया पर खुलकर चर्चा की। उन्होंने कहा, “मुझे बस इम्तियाज कहो। ‘इम्तियाज जी’ सुनकर ऐसा लगता है कि यह किसी और का नाम है। अगर किसी फिल्ममेकर से नफरत की जाती है या उस पर पत्थर फेंके जाते हैं, तो यह उसके नाम पर ही होना चाहिए।”
“9वीं में फेल होना मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़ था”
अपनी शुरुआती जिंदगी के संघर्षों का ज़िक्र करते हुए इम्तियाज अली ने कहा, “मैं 9वीं क्लास में फेल हो गया था, और यही मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट था। इस असफलता ने मुझे जिंदगी में आगे बढ़ने और अपने सपनों को पूरा करने की ताकत दी।”
उन्होंने अपने फिल्मी जुनून के बारे में बताया, “मेरे घर के पास एक थिएटर था, और अक्सर रात में उसका दरवाज़ा खुला रह जाता था। मैं वहां से स्क्रीन का एक छोटा सा हिस्सा देख पाता था – कभी अमिताभ बच्चन की नाक, तो कभी रेखा के कान। इससे मुझे सिनेमा को अलग नजरिए से देखने की समझ मिली, जो आगे जाकर मेरे फिल्म निर्देशन में काम आई।”

जयपुर से पुराना नाता
फेस्टिवल के दौरान इम्तियाज ने बताया कि उनका जयपुर से एक अनोखा रिश्ता रहा है। उन्होंने कहा, “मेरे थिएटर के पास एक सैलून था – ‘जयपुर हेयर कटिंग सैलून’। वहां लोग मिथुन चक्रवर्ती जैसी हेयरस्टाइल बनवाने आते थे। इस तरह जयपुर नाम से मेरा जुड़ाव हो गया।”
उन्होंने अपनी फिल्मों को लेकर कहा कि कई बार उनकी फिल्में रिलीज़ के वक्त उतनी सराही नहीं गईं, लेकिन बाद में लोगों ने उन्हें पसंद किया। “जब आलोचना आए, तो यह देखना ज़रूरी है कि क्या वह सही है। क्या आप खुद को सुधार सकते हैं? सफलता की कोई गारंटी नहीं होती, इसलिए बस अपना काम करते रहना चाहिए और असफलता के बोझ से खुद को मुक्त रखना चाहिए।”
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“महाभारत से आसान हैं मेरी फिल्में”
अपनी फिल्मों की शैली पर चर्चा करते हुए इम्तियाज अली ने कहा, “एक बार किसी ने मुझसे पूछा कि क्या मैं अपने समय से आगे की फिल्में बनाता हूं? मैंने जवाब दिया – नहीं, मैं चाहता हूं कि मेरी फिल्में उसी समय में समझी जाएं, जिसमें वे बनाई गई हैं। मैं चीज़ों को सरल बनाना चाहता हूं। अगर ‘महाभारत’ जैसी जटिल रचना को वेद व्यास की शैली में समझाया जा सकता है, तो मेरी फिल्में भी समझी जानी चाहिए। मेरी कोशिश यही रहती है कि फिल्में पहले ही दर्शकों को पसंद आ जाएं, बजाय इसके कि वे समय के साथ लोकप्रिय हों।”
“जैसी फिल्में लोग देखेंगे, वैसी ही बनेंगी”
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और कंटेंट को लेकर पूछे गए सवाल पर इम्तियाज अली ने कहा, “सिनेमा एक लोकतंत्र (डेमोक्रेसी) की तरह है। जैसी फिल्में लोग देखना पसंद करेंगे, वैसी ही फिल्में बनाई जाएंगी।”
“अगर बायोपिक बनाई, तो अमीर खुसरो पर बनाऊंगा”
जब उनसे बायोपिक फिल्म बनाने को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा, “फिलहाल मेरी कोई बायोपिक बनाने में दिलचस्पी नहीं है, लेकिन अगर कभी बनाऊंगा, तो वह अमीर खुसरो की बायोपिक होगी।”
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जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2025 में इम्तियाज अली के विचारों और उनकी फिल्म निर्माण यात्रा को लेकर खुलकर हुई बातचीत ने दर्शकों को गहराई से प्रभावित किया। उनकी सादगी और फिल्मों को लेकर स्पष्ट दृष्टिकोण ने यह दर्शाया कि सिनेमा सिर्फ कहानी कहने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह जीवन के अनुभवों को अभिव्यक्त करने की कला भी है।