Edited By: नरेश गुनानी मार्च 04, 2025 14: 54 IST
टेलीग्राफ टाइम्स
16 साल तक पेट में रहा सिक्का, एंडोस्कोप से निकाला तो चेहरे पर आई मुस्कान
अजमेर: राजस्थान के अजमेर में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जहां जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने 20 साल की युवती के पेट से 16 साल पुराना सिक्का सफलतापूर्वक निकाल दिया। यह सिक्का युवती ने महज 4 साल की उम्र में निगल लिया था, जो इतने सालों तक उसके शरीर में बिना किसी गंभीर समस्या के बना रहा। सफल ऑपरेशन के बाद युवती और उसके परिवार ने राहत की सांस ली और डॉक्टरों का आभार जताया।
एमआरआई चैंबर में महसूस होती थी हलचल
युवती, जो पेशे से एक एमआरआई टेक्नीशियन है, ने बताया कि जब भी वह एमआरआई चैंबर में जाती थी, तो उसे पेट में असामान्य हलचल महसूस होती थी। यह समस्या लंबे समय तक बनी रही, जिससे वह परेशान रहने लगी। जब उसने अपने माता-पिता को इस बारे में बताया, तो उसकी मां को याद आया कि उसने बचपन में एक सिक्का निगल लिया था। चूंकि उस समय कोई परेशानी नहीं हुई थी, इसलिए परिवार ने डॉक्टर से सलाह नहीं ली थी।
एंडोस्कोप के जरिए निकाला सिक्का
मां की बात सुनने के बाद युवती ने जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग में संपर्क किया। डॉक्टरों ने जब उसका एक्स-रे किया, तो यह पुष्टि हुई कि सिक्का अभी भी उसके पेट में ही मौजूद है। इसके बाद चिकित्सकों ने एंडोस्कोप की मदद से सिक्के को निकालने की प्रक्रिया शुरू की।
विभागाध्यक्ष डॉ. एमपी शर्मा के मार्गदर्शन में डॉ. मनोज कुमार और डॉ. राजमणि ने एंडोस्कोपिक प्रक्रिया के जरिए सिक्का सफलतापूर्वक निकाल दिया। इस प्रक्रिया में डॉ. ऋषभ पाराशर, श्री सुनील चौहान और श्री कैलाश चंद गुर्जर ने भी सहयोग किया। सफल ऑपरेशन के बाद युवती पूरी तरह स्वस्थ है और अब कोई परेशानी महसूस नहीं कर रही।
बच्चों द्वारा चीजें निगलने की घटनाओं को लें गंभीरता से
डॉ. एमपी शर्मा ने इस घटना के बाद परिजनों को चेतावनी देते हुए कहा कि छोटे बच्चे अक्सर खेल-खेल में सिक्के या अन्य बाहरी वस्तुएं निगल लेते हैं। ऐसे मामलों में तुरंत चिकित्सकीय सहायता लेनी चाहिए, क्योंकि यदि कोई वस्तु लंबे समय तक पेट में बनी रहती है, तो यह अल्सर, फिस्टुला या आंतों में रुकावट जैसी गंभीर समस्याएं पैदा कर सकती है।
युवती के सफल इलाज के बाद स्थानीय लोग डॉक्टरों की सराहना कर रहे हैं और इस मामले को एक सीख के रूप में देख रहे हैं कि बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही न बरती जाए।