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Lokendra Singh
भागलपुर, बिहार। श्रीकनकधारा स्तोत्र का शास्त्रों में बेहद खास महत्व प्रदान किया गया है। मनुष्य की अधिकांश परेशानियाँ धन से जुड़ी होती हैं। आदिशंकराचार्य जी द्वारा एक ऐसे ही स्तोत्र की रचना की गई थी, जिसके सही और नियमित पाठ करने से माता लक्ष्मी जी भी व्यक्ति पर धन बरसाने के लिए विवश हो जाती है।
इस सम्बन्ध में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त ज्योतिष योग शोध केन्द्र, बिहार के संस्थापक दैवज्ञ पं. आर. के. चौधरी उर्फ बाबा-भागलपुर, भविष्यवेत्ता एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ ने सुगमतापूर्वक बतलाया कि:- आदिशंकराचार्य जी ने श्रद्धालु/भक्तजनों की दरिद्रता को सदा-सर्वदा के लिए दूर करने तथा सम्पन्न और वैभवशाली बनाने के उद्देश्य से श्रीकनकधारा स्तोत्र की रचना की थी।
पौराणिक कथनानुसार आदिशंकराचार्य जी बाल्य काल में भोजन की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे। इसी क्रम में एक महिला की नजर भिक्षा माँगते हुए दिव्य बालक पर गई। उस महिला को बालक के प्रति अजीब सा खिंचाव महसूस हुआ। वह महिला बहुत निर्धन थी, उस बालक को कुछ भी अच्छा भोजन के लिए नहीं दे सकती, उस समय उसे अपने दुर्भाग्य पर बहुत क्रोध आ रहा था। इसी क्रम में आदिशंकराचार्य ने उस महिला से कहा कि जो भी उनके पास है, भले ही बहुत कम, लेकिन वह पर्याप्त है। उस महिला ने एकादशी का व्रत रखा हुआ था और उसके पास एक बेर के अलावा व्रत खोलने के लिए और कुछ नहीं था। उसने वह बेर भी आदिशंकराचार्य जी के पात्र में डाल दिया। आदिशंकराचार्य जी उस महिला पर द्रवित होकर उसी स्थान पर श्रीकनकधारा स्तोत्र की रचना कर तुरन्त पाठ किया। पाठ पूर्ण होते-होते आदिशंकराचार्य के पात्र में डाल हुए बेर के आकार का स्वर्ण मुद्राएँ की बरसात होने लगी और देखते ही देखते उस महिला के घर का आंगन स्वर्ण मुद्राओ से भर गया।
इसलिए कहा जाता है कि जो भी सच्चे मन और श्रद्धा से साथ नियमित तौर पर विशेषकर अक्षय तृतीया या शुक्ल पक्ष के शुक्रवार के दिन से श्रीकनकधारा स्तोत्र का पाठ करता है, माता लक्ष्मी जी उसके जीवन से धन संबंधी परेशानियों को हर लेती हैं।