भावेश जांगिड़
टेलीग्राफ टाइम्स
2 फरवरी
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) में राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग एक बार फिर जोर-शोर से उठी। भाषाविद् चंद्र प्रकाश देवल और अन्य विद्वानों ने इस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बिना भाषा की मान्यता के आजादी अधूरी है।

मुख्य बिंदु:
मारवाड़ी भाषा को बताया असली राजस्थानी: देवल ने कहा कि राजस्थान की अन्य बोलियों पर बाहरी भाषाओं का प्रभाव है, लेकिन असली राजस्थानी भाषा मारवाड़ी ही है।
76 वर्षों से जारी है संघर्ष: 1947 से ही राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता दिलाने की मांग चल रही है।
राजनीतिक समर्थन: 2016 में दिल्ली के जंतर-मंतर पर बड़े आंदोलन में 15 से अधिक सांसद और 40 से अधिक विधायकों ने समर्थन दिया था।
संवैधानिक मान्यता क्यों जरूरी?
राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने से:
1. शिक्षा और प्रशासन में इसका उपयोग बढ़ेगा।
2. संस्कृति और साहित्य को बढ़ावा मिलेगा।
3. भाषाई अधिकारों को मजबूती मिलेगी।
सरकार का रुख
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार इस मांग पर क्या निर्णय लेती है। कई अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की तरह राजस्थानी को भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग जोर पकड़ रही है।