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Lokendra Singh
भागलपुर, बिहार। सनातन धर्म परम्परा में मकर संक्रांति का दिन सूर्य की आराधना व उपासना का पावन उत्सव और पर्व है। वर्ष में कुल बारह संक्रांतियाॅ होती है जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण मकर संक्रांति है। इस सम्बन्ध में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त ज्योतिष योग शोध केन्द्र, बिहार के संस्थापक दैवज्ञ पंo आरo केo चौधरी उर्फ बाबा-भागलपुर, महान भविष्यवेत्ता एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ ने सुगमतापूर्वक बतलाया कि:- सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष *14 जनवरी, मंगलवार के दिन सूर्य सुबह 8 बजकर 41 मिनट मकर राशि में प्रवेश करेंगे। पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति पुण्य काल का समय भागलपुर में सुबह 9 बजकर 03 मिनट से लेकर शाम 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगा और महापुण्य काल का समय सुबह 9 बजकर 03 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक रहेगा।* समय का थोड़ा-बहुत अन्तर सभी पंचांग में हैं।
वैदिक पंचांग के अनुसार, साल 2025 में मकर संक्रांति 14 जनवरी दिन मंगलवार को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य देव सुबह 9 बजकर 3 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
खासकर उत्तर भारत में यह पर्व मकर संक्रांति, गुजरात प्रदेश में उत्तरायण, पंजाब में लोहड़ी, उत्तराखंड में उतरायणी, केरल में पोंगल और गढवाल में खिचड़ी संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यहाँ तक कि नेपाल सहित कई अन्य देशों में भी मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर हरिद्वार, काशी आदि तीर्थो पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। पौराणिक कथानुसार मकर संक्रांति के दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में मिली थी। इसलिए इस दिन गंगा स्नान करने का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति के दिन से मौसम में बदलाव होना सम्भावित रहता है। यही कारण है कि रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सूर्य के उत्तरी गोलाद्ध की ओर जाने के कारण ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ होता है तथा सूर्य के प्रकाश में गर्मी और तापमान बढ़ने लगती हैं। मकर संक्रांति के दिन दान करने का महत्व अन्य दिनों की तुलना में बढ़ जाता है। इस दिन सामर्थ्यवान सनातन परायणी को अन्न, तिल, गुड़, वस्त्र तथा कम्बल का दान अवश्य करना चाहिए। इस दिन लोग तिल व तिल से बने खाद्य सामग्रियों तथा गुड़ का सेवन करते हैं। ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य में तिल का दान और तिल का सेवन करने से शनि ग्रह के कुप्रभाव कम होते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तिल और गुड़ का सेवन करने से ठण्ड में भी शरीर का तापमान सामान्य बना रहता है और सर्दी-जुकाम से राहत मिलती है। इस दिन हम लोग खिचड़ी का भी सेवन करते हैं जिससे शरीर को ऊर्जा मिलती है। हमारे देश में कहीं-कहीं पतंग (गुड्ढी) उड़ाने की परम्परा है। दरअसल मान्यता है कि पतंग खुॅशी, उल्लास, आजादी तथा शुभ संदेश वाहक है इसलिए मकर संक्रांति के दिन से घर-परिवार व समाज में सारे शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। मकर संक्रांति पुण्य और पवित्रता का दिन है। क्योंकि पितामह भीष्म ने इसी दिन प्राण त्यागे थे और उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। इससे पहले वे उत्तरायण की प्रतीक्षा करते रहें और बाणों की शैय्या पर कष्ट सहन करते रहें। शास्त्रोंक्त मतानुसार सूर्य के दक्षिणायन में प्राण त्याग करने से मुक्ति नहीं होती है। दक्षिणायन अंधकार की अवधि मानी जाती है। वहीं सूर्यदेव का उत्तरायण होना शुभ और प्रकाश की अवधि होती है। इसलिए पितामह भीष्म ने प्राण त्याग के लिए यही समय को सबसे महत्वपूर्ण माना। हमारे देश में मकर संक्रांति कहीं उत्सव, कहीं पूजा के रूप में आदि काल से ही मनाने की परम्परा चली आ रही है। जो कि अब कहीं-कहीं मेला का रूप धारण कर चुकी है।