बॉलीवुड स्टार्स की फीस से आधा बजट, सेक्स वर्कर की कहानी और 4 ऑस्कर… क्यों खास है ‘अनोरा’ की जीत?

Edited By: नरेश गुनानी मार्च 06, 2025 10:58 IST
टेलीग्राफ टाइम्स

बॉलीवुड स्टार्स की फीस से आधा बजट, सेक्स वर्कर की कहानी और 4 ऑस्कर… क्यों खास है ‘अनोरा’ की जीत?

ऑस्कर 2025 में बेस्ट पिक्चर का अवॉर्ड जीतने वाली फिल्म ‘अनोरा’ इन दिनों सिनेमा प्रेमियों के बीच चर्चा का हॉट टॉपिक बनी हुई है। जब नॉमिनेशन की घोषणा हुई थी, तब इसे ऑस्कर की रेस में बहुत मजबूत दावेदार नहीं माना जा रहा था, लेकिन फिल्म ने अपनी दमदार स्टोरीटेलिंग, यथार्थवादी अप्रोच और बेहतरीन निर्देशन के दम पर 4 ऑस्कर जीतकर इतिहास रच दिया।

‘अनोरा’ की खासियत क्या है?
फिल्म की कहानी एक सेक्स वर्कर और एडल्ट डांसर के जीवन पर आधारित है, जिसकी शादी रूस के एक अमीर व्यक्ति के बेटे से हो जाती है। यह शादी उसके लिए एक सपने जैसी लगती है, लेकिन जैसे-जैसे हकीकत सामने आती है, उसकी उम्मीदें बिखरने लगती हैं। निर्देशक शॉन बेकर ने इस फिल्म के जरिए यथार्थवादी अंदाज में एक महिला के संघर्ष को दिखाया है, जो समाज के हाशिए पर रहने वालों के लिए एक आवाज बनती है।

अनोरा ,से एक सीन :सोशल मीडिया

कम बजट, लेकिन बड़ी जीत

‘अनोरा’ का बजट महज 6 मिलियन डॉलर (करीब 52 करोड़ रुपये) था, जो बॉलीवुड के बड़े स्टार्स की फीस से भी कम है। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में कार्तिक आर्यन, अक्षय कुमार और खान तिकड़ी की फीस करोड़ों में होती है। कार्तिक आर्यन एक फिल्म के लिए 50 करोड़ और अक्षय कुमार 60 से 145 करोड़ तक चार्ज करते हैं।

सीन : सोशल मीडिया

इस तुलना से साफ है कि ‘अनोरा’ जैसी इंडिपेंडेंट फिल्में कम बजट में भी विश्व स्तर पर पहचान बना सकती हैं, जबकि बॉलीवुड में अक्सर हाई-बजट फिल्मों के बावजूद कमजोर कंटेंट वाली फिल्में फ्लॉप हो जाती हैं।

इंडी फिल्मों का महत्व और संघर्ष

इंडिपेंडेंट सिनेमा या ‘इंडी सिनेमा’ मुख्यधारा की फिल्मों से अलग होता है। ये फिल्में रियलिस्टिक कहानियों और सामाजिक मुद्दों पर आधारित होती हैं। ‘अनोरा’ भी ऐसी ही एक फिल्म है, जो चमक-धमक और ग्लैमर से परे जाकर वास्तविक जीवन की कड़वी सच्चाई दिखाती है।

शॉन बेकर इससे पहले ‘टैंजरीन’, ‘रेड रॉकेट’ और ‘द फ्लोरिडा प्रोजेक्ट’ जैसी फिल्में बना चुके हैं, जो सेक्स वर्क और सामाजिक हाशिए पर रहने वाले लोगों की कहानियों को बारीकी से पेश करती हैं।

लेकिन इंडी फिल्ममेकर्स का संघर्ष सिर्फ फिल्म बनाने तक ही सीमित नहीं होता।

इन फिल्मों को बड़े प्रोडक्शन हाउस और स्टूडियोज से फंडिंग नहीं मिलती।

अनोरा ,से एक सीन: सोशल मीडिया)

थिएटर रिलीज पाना मुश्किल होता है।

इन्हें अक्सर ‘फेस्टिवल फिल्म’ कहकर सीमित कर दिया जाता है।

ऑस्कर में ‘अनोरा’ की ऐतिहासिक जीत

‘अनोरा’ को ऑस्कर 2025 में 6 नॉमिनेशन मिले थे, जिनमें से फिल्म ने 5 कैटेगरी में अवॉर्ड जीते:

1. बेस्ट पिक्चर

2. बेस्ट डायरेक्टर (शॉन बेकर)

3. बेस्ट ऑरिजिनल स्क्रीनप्ले

4. बेस्ट एडिटिंग

5. बेस्ट एक्ट्रेस (माइकी मैडिसन)

 

इस तरह ‘अनोरा’ ने इंडी सिनेमा के लिए एक नया बेंचमार्क सेट कर दिया है।

बदलता हुआ ऑस्कर और इंडी सिनेमा की स्वीकार्यता

ऑस्कर में भी अब ऐसी फिल्मों को जगह दी जा रही है, जो समाज के अल्पसंख्यक वर्गों, हाशिए पर रहने वाले समुदायों या अनसुनी कहानियों को प्रस्तुत करती हैं। पहले तक बड़े बजट की हॉलीवुड फिल्मों का ही दबदबा था, लेकिन अब इंडी फिल्मों को भी समान अवसर मिल रहे हैं।

हाल के वर्षों में कुछ और इंडी फिल्में भी चर्चा में रही हैं:

‘Parasite’ (2019) – पहली नॉन-इंग्लिश फिल्म जिसने बेस्ट पिक्चर जीता।

‘Nomadland’ (2020) – एक लो-बजट फिल्म जिसने ऑस्कर में धमाल मचाया।

‘Everything Everywhere All at Once’ (2022) – एक अनोखी कहानी जिसने कई अवॉर्ड्स अपने नाम किए।

अब ‘अनोरा’ की जीत इस बात का प्रमाण है कि कमर्शियल सिनेमा के बाहर भी दमदार कहानियों की सराहना हो रही है।

अनोरा, से एक सीन : सोशल मीडिया

बॉलीवुड में इंडी फिल्मों का भविष्य?

भारत में भी कई बेहतरीन इंडी फिल्में बनी हैं, लेकिन इन्हें रिलीज और दर्शकों तक पहुंचने में दिक्कतें होती हैं। उदाहरण के लिए:

‘आंखों देखी’ (2014) – संजय मिश्रा

‘अ डेथ इन द गंज’ (2016) – कोंकणा सेन शर्मा

‘द लंचबॉक्स’ (2013) – इरफान खान

हालांकि, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स (Netflix, Amazon Prime, etc.) ने इंडी फिल्मों के लिए एक नया रास्ता खोला है, लेकिन फिर भी बड़ी स्क्रीन पर इन फिल्मों को जगह मिलना आज भी मुश्किल बना हुआ है।

अनोरा,से एक सीन : सोशल मीडिया

शॉन बेकर का ‘युद्धघोष’ – बड़ी स्क्रीन के लिए फिल्में बनाते रहिए

ऑस्कर जीतने के बाद शॉन बेकर ने अपनी स्पीच में कहा,
“ये मेरा युद्धघोष है: फिल्ममेकर्स, बड़ी स्क्रीन के लिए फिल्में बनाते रहिए। मुझे यकीन है कि मैं तो यही करता रहूंगा।”

उनकी इस बात से इंडी फिल्ममेकर्स को एक नया हौसला मिला है। अब देखने वाली बात होगी कि इस जीत का असर दुनिया भर के सिनेमा पर कितना पड़ता है और क्या भारत में भी इंडी फिल्मों को थिएटर में समान अवसर मिल पाएंगे?

 

 

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