गणेश शर्मा
नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत का एक प्रमुख शिक्षा केंद्र था, जिसने न केवल भारतीय उपमहाद्वीप बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित किया। यह विश्वविद्यालय ज्ञान, बौद्ध अध्ययन, दर्शन, गणित, चिकित्सा और विज्ञान का वैश्विक केंद्र था। इसकी स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ने की थी, और यह लगभग 800 वर्षों तक ज्ञान का प्रकाश स्तंभ बना रहा।
नालंदा का वैश्विक प्रभाव
1. शिक्षा का अंतरराष्ट्रीय केंद्र
नालंदा में केवल भारत ही नहीं, बल्कि चीन, कोरिया, तिब्बत, मंगोलिया, जापान, श्रीलंका, इंडोनेशिया, फारस और तुर्की से भी विद्यार्थी और विद्वान आते थे। यह विश्वविद्यालय प्राचीन काल में पहला ऐसा संस्थान था, जहां विदेशी छात्र बड़ी संख्या में शिक्षा ग्रहण करते थे। चीनी विद्वान ह्वेनसांग और इत्सिंग ने यहाँ अध्ययन किया और अपनी रचनाओं में नालंदा की महिमा का उल्लेख किया।
2. व्यवस्थित शिक्षा प्रणाली
नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षा प्रणाली आधुनिक विश्वविद्यालयों जैसी थी। यहाँ विभिन्न विषयों पर अध्ययन के लिए कई विभाग थे। प्रवेश प्रक्रिया कठिन थी, और केवल मेधावी छात्र ही यहाँ पढ़ने का अवसर प्राप्त कर सकते थे।
3. विविध विषयों का अध्ययन
यहाँ बौद्ध धर्म, वेद, व्याकरण, चिकित्सा, गणित, खगोलशास्त्र, राजनीति, योग, तंत्र, स्थापत्य कला आदि का गहन अध्ययन किया जाता था। विशेष रूप से बौद्ध तंत्र और महायान बौद्ध धर्म की शिक्षा के लिए यह प्रमुख केंद्र था।
4. पुस्तकालय – ज्ञान का भंडार
नालंदा का पुस्तकालय ‘धर्मगंज’ (Dharma Ganja) तीन विशाल इमारतों—रत्नसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक—में विभाजित था। इसमें लाखों पांडुलिपियाँ संग्रहीत थीं, जो विभिन्न विषयों पर आधारित थीं। यह पुस्तकालय कई सदियों तक ज्ञान के प्रसार का केंद्र बना रहा।

5. विज्ञान और चिकित्सा में योगदान
नालंदा में चिकित्सा और आयुर्वेद के क्षेत्र में भी गहन शोध और अध्ययन किया जाता था। यहाँ के विद्वानों ने औषधियों और शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे भारतीय चिकित्सा प्रणाली समृद्ध हुई।
6. बौद्ध धर्म और संस्कृति का प्रसार
नालंदा से निकले विद्वानों ने चीन, जापान, तिब्बत और दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म का प्रचार किया। बौद्ध तंत्र, ध्यान (Meditation) और महायान परंपरा का विस्तार नालंदा के विद्वानों के कारण हुआ।
नालंदा का पतन और पुनरुद्धार
12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के कारण नालंदा विश्वविद्यालय नष्ट हो गया। इसका पुस्तकालय जलाया गया, और विद्वानों की हत्या कर दी गई। इसके बाद यह केंद्र धीरे-धीरे लुप्त हो गया।
हालांकि, 21वीं सदी में भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को पुनः स्थापित किया। 2010 में इसका पुनरुद्धार शुरू हुआ, और 2014 में इसका नया परिसर बिहार के राजगीर में स्थापित किया गया।