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Lokendra Singh
भागलपुर, बिहार। श्री भैरवनाथ के अनेक रूप व साधनाओं का वर्णन तंत्र शास्त्रों में वर्णित है। उनमें से एक श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव साधना है जो साधक को दरिद्रता से मुक्ति दिलाती है। जैसा इनका नाम है वैसा ही इनके मन्त्र का प्रभाव है। अपने भक्तों की दरिद्रता को नष्ट कर उन्हें धन-धान्य सम्पन्न बनाने के कारण ही इनका नाम स्वर्णाकर्षण भैरव के रूप में प्रसिद्ध है।
भगवती पिताम्बरा यानी माँ बगलामुखी की साधना में स्वर्णाकर्षण भैरव का विशेष स्थान है। विशेषकर धनतेरस के अवसर पर स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र का पाठ या स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र का जप करने से विशेष रूप से आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है और जो श्रद्धालु नित्य इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, उन्हें धीरे-धीरे धन प्राप्ति के मार्ग सहज होने लगते हैं। दरिद्रता के नाश के लिए नन्दी भगवान ने इस स्तोत्र का वर्णन महर्षि मार्कण्डेय जी से किया था। इस सम्बन्ध में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त ज्योतिष योग शोध केन्द्र, बिहार के संस्थापक दैवज्ञ पं. आर. के. चौधरी उर्फ बाबा-भागलपुर, भविष्यवेत्ता एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ ने सुगमतापूर्वक बतलाया कि:- देवाधिदेव महादेव का स्वर्णाकर्षण भैरव स्वरूप काल भैरव का सात्त्विक दिव्य रूप हैं, जिनकी पूजा धन प्राप्ति के लिए की जाती है। यह हमेशा पाताल में रहते हैं। जैसे सोना धरती के गर्भ में होता है। इनका प्रसाद दूध और मेवा है। इसलिए इनके साधना में मांस-मदिरा सख्त वर्जित है। भैरव नाथ रात्रि के देवता माने जाते हैं। इस कारण इनकी साधना का समय मध्य रात्रि यानी रात के 11 बजे से 3 बजे के मध्य का है व इनकी उपस्थिति का अनुभव गंध के माध्यम से ही साधक को साधना काल में होता है। इनके साधना से सभी अष्ट-दारिद्र्य समाप्त हो जाता है। जो साधक इनका साधना करता है उसके जीवन मे कभी आर्थिक हानि नहीं होती है तथा जीवन पर्यन्त श्रीसम्पन्न बना रहता है।
जिनकी जन्मकुण्डली में धनभाव पीड़ित हो, धनेश और लाभेश भी पीड़ित हो तथा अनेक प्रकार के लक्ष्मी और कुबेर साधनाओं के बावजूद भी आर्थिक परेशानी खत्म नहीं हो रही हो तो यह साधना आर्थिक कष्टों से मुक्ति देती है। भयंकर रूप से अभावग्रस्त होने पर इस साधना के फलस्वरूप सर्वाधिक धन की प्राप्ति होती है। साधक द्वारा प्रतिदिन या 41 दिनों तक लगातार स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र का पाठ करने या स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र की 11 माला जाप करने से विशेषरूप से अर्थ लाभ के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की परेशानियों का शमन स्वतः हो जाता है।
पौराणिक कथानुसार देवासुर संग्राम में युद्ध के कारण कुबेर जी को जब धन की भारी कमी व हानि होने पर माता लक्ष्मी जी भी धन से हीन हो गयी थी, उस समय सभी देवी-देवता देवाधिदेव महादेव जी की शरण में गए थे। महादेव जी ने नन्दी जी को माध्यम बनाकर स्वर्णाकर्षण देव की महिमा गायी। सभी देवी-देवताओं सहित नन्दी जी ने यक्षराज श्रीकुबेर जी को धनवान बनाने के लिये महादेव जी ने जब ये प्रश्न किये की कुबेर के खाली हुये भण्डार फिर से भर दें, ऐसा कैसे संभव होगा? तब देवाधिदेव महादेव जी ने भगवती के अविनाशी धाम श्रीमणिद्वीप के कोषाध्यक्ष श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवनाथ भगवान की महिमा और वैभव का वर्णन किया तथा उनकी शरण में जाने को कहा था। फिर लक्ष्मी जी और कुबेर जी ने विशालातीर्थ (बद्रीविशाल धाम में) तीन हज़ार वर्षो तक सभी देवी-देवताओं सहित धन की देवी माता लक्ष्मी जी और कुबेर जी ने भीषण तप किया तब भगवान स्वर्णाकर्षण भैरव जी ने उन्हें दर्शन देकर श्रीमणिद्वीप धाम से प्रगट होकर चार भुजाओं से धन की वर्षा की, जिससे पुनः सभी देवता श्रीसम्पन्न हो गए।