डाई दिन की जिंदगी, युगों-युगों की प्रेरणा


Telegraph Times
• दुनिया की सबसे छोटी डोनर बनी नन्हीं सरस्वती

– माता-पिता के साहसिक निर्णय की हो रही सराहना

देहरादून:नन्हीं सरस्वती एक नाम, जो इतिहास बन गया। सरस्वती का जीवन छोटा था, लेकिन उसका योगदान हमेशा मानवता को प्रेरित करता रहेगा। बिना बोले, बिना चले, ढाई दिन की सरख्यती ने ऐसा काम किया, जो युगों-युगों तक याद रखा जाएगा।

दुनिया में कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो किसी देश, समाज या परिवार की सीमाओं से बाहर निकलकर पूरे विश्व की प्रेरणा बन जाती हैं। ढाई दिन की नन्हीं बच्ची ‘सरस्वती’ की कहानी भी ऐसी ही है- दर्द, हिम्मत और मानवता की मिसाल। ढाई दिन की नहीं सरस्वती भले ही इस दुनिया में कुछ घंटों की मेहमान थी, लेकिन उसका देहदान ऐसा अनमोल उपहार है, जिसने उसे अमर कर दिया। एक युवा दंपत्ति के साहसिक कदम ने मानवता के सामने एक नई मिसाल पेश की है।

उत्तराखंड के हरिद्वार के रहने वाले 30 वर्षीय राममेहर और उनकी पत्नी नैंसी के जीवन में एक नई खुशी ने जन्म लिया। यह एक नन्हीं परी थी जिसने पहली बार दुनिया देखी, लेकिन यह खुशी पलभर की थी। बच्ची का दिल सही ढंग से काम नहीं कर रहा था और उसकी सांसें कमजोर होती जा रही थीं। डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद केवल ढाई दिन के बाद वह चिरनिद्रा में सो गई।

दुनिया के लिए अनमोल फैसला

दुख की इस घड़ी में जब हर माता-पिता के लिए आंसू पोंछ पाना भी मुश्किल होता है, राममेहर और नैसी ने एक ऐसा फैसला लिया जिसने सभी को स्तब्ध कर दिया। उनके पारिवारिक डॉक्टर जितेंद्र सैनी ने उन्हें देहदान का सुझाव दिया। अगर यह नन्हीं जिंदगी किसी और के काम आ सके तो क्या यह सबसे बड़ा आशीर्वाद नहीं होगा? एक मां और पिता के लिए यह निर्णय आसान नहीं था, लेकिन राममेहर और नैंसी ने न केवल अपनी बेटी को ‘सरस्वती’ नाम दिया, बल्कि उसे ज्ञान की देवी के समान अजर-अमर बना दिया।

सबसे कम उम्र की डोनर बनी सरस्वती

ढाई दिन की सरस्वती सबसे कम उम्र की देहदानकर्ता बन गई। इस घटना ने चिकित्सा जगत में एक नई प्रेरणा दी। इससे पहले दिल्ली के एभ्स में सात दिन के नवजात का देहदान किया गया था। अब उत्तराखंड के इस युवा दंपति ने अपनी बच्ची का देहदान कर एक बड़ी मिसाल पेश की है।

सदियों तक मानवता को शिक्षा देगी सरस्वती

सरस्वती का शरीर अब दून मेडिकल कॉलेज के म्यूजियम में रखा जाएगा। उनके शरीर पर विशेष धर्मालीन लेप लगाया गया है ताकि यह लंबे समय तक सुरक्षित रहे। मेडिकल छात्रों के लिए नवजात शरीर का अध्ययन बहुत दुर्लभ होता है। सरभ्यती का यह योगदान आने वाले चिकित्सकों को नई शिक्षा और समझ देगा।

सरस्वती का अमर संदेश

सरस्वती भले ही केवल डाई दिन इस दुनिया में रही, लेकिन उसने पूरे विश्व को यह संदेश दिया कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं है। उसका देहदान भविष्य के डॉक्टरों को ज्ञान की रोशनी देगा। उनके माता-पिता ने यह साबित किया कि किसी को खोकर भी हम दुनिया के लिए कुछ अमूल्य दे सकते हैं।

हरिद्वार में एक फैक्टरी में काम करते हैं बच्ची के पिता

ढाई दिन की नवजात बच्ची को हृदय संबंधी रोग (एसफिल्सिया) था। बच्ची के पिता राम मेहर हरिद्वार की एक फैक्टरी में कार्यरत हैं। उन्होंने परिवार के साथ मिलकर दधीचि देहदान समिति के अध्यक्ष डॉ. मुकेश गोयल के माध्यम से दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में अपनी बच्ची का देहदान किया।

दुर्लभ और प्रेरक मिसाल

एनॉटमी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एमके पंत और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजेश कुमार मौर्य के अनुसार, इतनी कम उम्र के बच्चे का देहदान बेहद दुर्लभ है। शव को थर्मलीन लेप के जरिए लंबे समय तक संरक्षित किया जाएगा, जिससे यह मेडिकल छात्रों के अध्ययन के लिए उपयोगी साबित होगा। यह निर्णय मानवता के लिए एक प्रेरणादायक मिसाल बन गया है।

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