ट्रंप टैरिफ का वैश्विक झटका, लेकिन भारत के लिए अवसर! हर साल हो सकता है 2396 रुपये का नुकसान, पर खुल सकते हैं 50 बिलियन डॉलर के नए बाजार
Edited By : गौरव कोचर
अप्रैल 07, 2025 13:37 IST
टेलीग्राफ टाइम्स
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ नीति ने वैश्विक व्यापार जगत में हड़कंप मचा दिया है। इस नई नीति के तहत अमेरिका अब उन्हीं देशों पर उतना ही टैरिफ (आयात शुल्क) लगाएगा, जितना वे अमेरिकी उत्पादों पर लगाते हैं। यह कदम अमेरिका के भारी व्यापार घाटे को कम करने की दिशा में उठाया गया है, लेकिन इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा — खासतौर पर उन देशों पर जिनकी अर्थव्यवस्था निर्यात पर निर्भर है।
भारत पर 26% टैरिफ, लेकिन कम है नुकसान
अमेरिका ने सभी देशों पर 10% का बेस टैरिफ लगाया है और इसके अलावा अतिरिक्त शुल्क भी जोड़ा गया है। भारत पर कुल 26% टैरिफ लगेगा। यह दर चीन (34%), वियतनाम (46%), बांग्लादेश (37%) जैसे देशों से कम है, जो अमेरिका के बड़े व्यापारिक साझेदार हैं। ऐसे में भारत की स्थिति तुलनात्मक रूप से बेहतर है, क्योंकि भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजार में अब भी सस्ते रहेंगे।
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत को इस स्थिति का फायदा मिल सकता है, क्योंकि भारत और अमेरिका के बीच बाइलैटरल ट्रेड एग्रीमेंट पर बातचीत जारी है। अगर यह समझौता सफल होता है, तो भारत को टैरिफ में राहत मिल सकती है और प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में बड़ा फायदा मिल सकता है।
कौन से सेक्टर्स होंगे प्रभावित?
भारत अप्रैल 2024 से फरवरी 2025 के बीच अमेरिका को 395.63 अरब डॉलर का निर्यात कर चुका है, जिससे यह भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार बन गया है। ऐसे में टैरिफ का असर कई अहम सेक्टर्स पर पड़ सकता है:
- टेक्सटाइल और रेडीमेड गारमेंट्स: भारत हर साल अमेरिका को 8 अरब डॉलर के कपड़े बेचता है। टैरिफ से कीमतें बढ़ेंगी, लेकिन बांग्लादेश और वियतनाम पर ज्यादा शुल्क होने से भारत के उत्पाद अब भी प्रतिस्पर्धी रहेंगे।
- आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स: लैपटॉप, मोबाइल और उपकरणों पर असर संभव है, लेकिन यह सेक्टर आयात और मैन्युफैक्चरिंग दोनों में बैलेंस बना सकता है।
- कृषि उत्पाद: खासकर मछली, चावल और मसालों पर असर पड़ेगा। भारत हर साल अमेरिका को 5 अरब डॉलर के कृषि उत्पाद भेजता है।
आपकी कमाई पर असर: सिर्फ 2396 रुपये सालाना
इन टैरिफ का भारत की जीडीपी पर सीधा असर मात्र 0.19% का होगा। वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी अभी 2.4% ही है, इसलिए झटका बहुत बड़ा नहीं है।
यदि इस असर को घरेलू परिवारों के स्तर पर देखा जाए तो यह नुकसान प्रति परिवार सालाना केवल 2396 रुपये का होगा। मजबूत घरेलू मांग के चलते भारत की अर्थव्यवस्था 6.5% से 7.5% की रफ्तार से बढ़ती रह सकती है।

अमेरिका में स्टैगफ्लेशन का खतरा
जहां भारत इस स्थिति से उबर सकता है, वहीं अमेरिका में हालात और बिगड़ सकते हैं। आयात महंगे होने से वहां महंगाई बढ़ेगी। अगर अमेरिकी डॉलर मजबूत नहीं हुआ, तो उपभोक्ताओं को महंगे उत्पाद खरीदने होंगे, जिससे स्टैगफ्लेशन यानी विकास की रफ्तार थमने के साथ महंगाई बढ़ने का खतरा बन सकता है।
भारत के लिए संभावनाएं और रणनीति
भारत इस संकट को एक अवसर में बदल सकता है। ‘टैरिफ आर्बिट्रेज’ का लाभ लेकर भारत चीन, वियतनाम जैसे देशों को प्रतिस्पर्धा में पछाड़ सकता है। इसके लिए भारत को निम्नलिखित रणनीतियों पर काम करना होगा:
- ट्रेड डील्स: अमेरिका, यूके, बहरीन, कतर और यूरोपीय यूनियन के साथ तेजी से समझौते करने होंगे।
- घरेलू उत्पादन को बढ़ावा: इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल, सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना होगा।
- नए बाजारों की तलाश: खाड़ी, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत करने होंगे।
- निर्यातकों के लिए प्रोत्साहन योजना: MSMEs, टेक्सटाइल और कृषि क्षेत्र के एक्सपोर्टर्स को वित्तीय और तकनीकी मदद देना जरूरी है।
सरकार की तैयारी
भारत सरकार ने घरेलू उद्योगों को सुरक्षा देने और डंपिंग रोकने के लिए पहले ही कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। अमेरिका के साथ ट्रेड डील को प्राथमिकता दी जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले 2-3 सालों में भारत को 50 अरब डॉलर का नया बाजार मिल सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ फैसले ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया है, लेकिन भारत के लिए यह ‘संकट में अवसर’ जैसा है। अगर रणनीतिक रूप से आगे बढ़ा गया, तो भारत न केवल नुकसान से बच सकता है, बल्कि वैश्विक बाजार में अपनी पकड़ भी मजबूत कर सकता है। सरकार, उद्योग जगत और निर्यातकों को मिलकर इस मौके को भुनाना होगा।