अलवर में घोड़े, ऊंट, हाथी और डीजे के साथ निकली अनोखी शवयात्रा, नाचते-गाते श्मशान घाट पहुंचे हजारों लोग
Edited By: नरेश गुनानी
मार्च 20, 2025 12:00 IST
टेलीग्राफ टाइम्स
अलवर, राजस्थान।
राजस्थान के अलवर शहर में बुधवार को एक अनोखी शवयात्रा निकाली गई, जो पूरे जिले में चर्चा का विषय बन गई। यह शवयात्रा किसी शादी की बारात जैसी दिख रही थी, जिसमें समाज के हजारों लोग नाचते-गाते शामिल हुए। शवयात्रा में घोड़े, ऊंट, हाथी और डीजे के साथ रंग-बिरंगे गुलाल उड़ाए गए। जहां-जहां से यह शवयात्रा गुजरी, लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी।
अनोखी शवयात्रा का दृश्य
यह अनोखी शवयात्रा अलवरिया लुहार समाज के प्रमुख और सरपंच रिछपाल गडरिया लोहार (90) की थी। रिछपाल गडरिया लोहार राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में रहने वाले अलवरिया गडरिया लोहार समाज के पंच, सरपंच और प्रधान थे। उनकी पालकी को फूलों और गुब्बारों से सजाया गया था। सबसे आगे बैंड-बाजे, उसके बाद डीजे, फिर नाचती हुई घोड़ी और हाथी थे। अंत में पालकी पर बैठे रिछपाल गडरिया लोहार के ऊपर फूल बरसाए जा रहे थे।
नाचते-गाते और गुलाल उड़ाते पहुंचे श्मशान घाट
यह शवयात्रा अलवर के अग्रसेन सर्किल से तीज श्मशान घाट तक निकाली गई। समाज के लोग गम में डूबने की बजाय खुशी और उत्साह के साथ नाचते-गाते और भजन गाते हुए शवयात्रा में शामिल हुए। हाथी, घोड़े और ऊंट की सवारी के साथ शवयात्रा ने श्मशान घाट तक का सफर तय किया।
पुरानी परंपरा का निर्वहन
रिछपाल गडरिया लोहार के परिवार के सदस्यों ने बताया कि यह धूमधाम से शवयात्रा निकालने की प्रथा कई वर्षों से लोहार समाज का हिस्सा रही है। समाज के बड़े-बुजुर्गों का मानना है कि मृत्यु को भी उत्सव के रूप में मनाना चाहिए और अंतिम यात्रा को शोकपूर्ण बनाने के बजाय धूमधाम से निकालना चाहिए। रिछपाल गडरिया लोहार ने समाज के उत्थान के लिए कई कार्य किए थे, इसलिए उनकी अंतिम यात्रा को विशेष रूप से भव्य बनाया गया।
देशभर से जुटे समाज के लोग
अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, गुड़गांव और उत्तर प्रदेश से हजारों लोग पहुंचे। समाज के लोगों ने कहा कि रिछपाल गडरिया लोहार का समाज के प्रति योगदान और उनका व्यक्तित्व प्रेरणादायक था। उनकी अंतिम यात्रा को इस अनोखे अंदाज में निकालकर समाज ने उनके प्रति सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित की।
समाज के लिए प्रेरणा
रिछपाल गडरिया लोहार के निधन से समाज में शोक की लहर है, लेकिन उनकी अंतिम यात्रा ने यह संदेश दिया कि मृत्यु के बाद भी जीवन का उत्सव मनाया जा सकता है। यह शवयात्रा न केवल अलवर में बल्कि आसपास के इलाकों में भी चर्चा का केंद्र बनी हुई है।