गौरव कोचर | टेलीग्राफ टाइम्स
रियाद में गुप्त वार्ता, 4.5 घंटे तक चली बैठक
कई सालों के बाद अमेरिका और रूस के बीच उच्चस्तरीय बातचीत हुई, जिसने वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी है। यह वार्ता मंगलवार को सऊदी अरब की राजधानी रियाद में हुई, जिसमें यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने और दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों को सुधारने पर चर्चा हुई। लेकिन इस बैठक में सबसे बड़ा ट्विस्ट यह रहा कि इसमें यूक्रेन को शामिल नहीं किया गया, जिससे यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की बेहद नाराज हो गए।
करीब 4.5 घंटे तक चली इस बैठक में रूस की तरफ से विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव, राष्ट्रपति के सहायक यूरी उशाकोव और रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष (RDIF) के सीईओ किरिल दिमित्रिव मौजूद थे। वहीं, अमेरिका की ओर से विदेश मंत्री मार्को रुबियो, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज और मध्य पूर्व के लिए विशेष दूत स्टीफन विटकॉफ ने भाग लिया।

अमेरिका और रूस राजनयिक संबंध सुधारने पर सहमत
बैठक के बाद अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि दोनों देश अपने-अपने राजनयिक मिशनों के संचालन को सामान्य बनाने पर सहमत हुए हैं। इसके अलावा, अमेरिका और रूस ने द्विपक्षीय संबंधों में सुधार लाने के लिए एक परामर्श तंत्र बनाने पर भी सहमति जताई है।
अमेरिका ने कहा कि दोनों पक्ष यूक्रेन में संघर्ष को जल्द से जल्द समाप्त करने के लिए ठोस प्रयास करने को तैयार हैं। हालांकि, इस बैठक में यूक्रेन को शामिल न किए जाने से विवाद खड़ा हो गया है।
वार्ता से बाहर रखे जाने पर भड़के जेलेंस्की
यूक्रेन के बिना शांति वार्ता होने से यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की गुस्से में हैं। उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा,
“रूस और अमेरिका हमारे देश के भविष्य पर बातचीत कर रहे हैं… और वो भी बिना यूक्रेन को शामिल किए! यह अस्वीकार्य है। शांति समझौता तब तक संभव नहीं जब तक यूक्रेन उसमें शामिल न हो।”
जेलेंस्की ने यह भी मांग की कि इस तरह की वार्ता में यूक्रेन, यूरोपीय यूनियन, तुर्की और ब्रिटेन को भी शामिल किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, उन्होंने अमेरिका पर रूस को खुश करने का आरोप लगाते हुए कहा,
“अमेरिका अब पुतिन को अच्छी लगने वाली बातें कह रहा है, ताकि उन्हें खुश किया जा सके। वे बस एक संघर्ष विराम चाहते हैं, जो किसी भी तरह से जीत नहीं है।”
चीन को भी रास नहीं आई यह बैठक
अमेरिका-रूस की इस वार्ता पर चीन की ओर से भी सवाल उठाए गए हैं। चीन अब तक खुद को इस युद्ध में एक मध्यस्थ की भूमिका में देख रहा था। उसने युद्ध समाप्त करने के लिए पहले भी कई प्रस्ताव पेश किए थे, लेकिन इस बैठक में उसे भी नजरअंदाज किया गया।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
“चीन हमेशा बातचीत और राजनीतिक समाधान की वकालत करता है। लेकिन यूक्रेन संकट को हमने नहीं खड़ा किया और न ही हम इसमें भागीदार हैं। फिर भी हम सिर्फ दर्शक बनकर नहीं रह सकते।”
चीनी एक्सपर्ट्स ने ट्रंप की मंशा पर उठाए सवाल
चीन के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका और रूस भले ही बातचीत कर रहे हैं, लेकिन उनके रिश्तों में वर्षों से जमी बर्फ इतनी आसानी से नहीं पिघलेगी।
लान्झू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सन शियुवेन ने कहा कि रूस अपनी मुख्य शर्तों से पीछे हटने को तैयार नहीं होगा—जैसे नेटो के विस्तार को रोकना, सैन्य कब्जे वाले क्षेत्रों को बनाए रखना और क्रीमिया तक कॉरिडोर बनाना।
उन्होंने यह भी कहा कि डोनाल्ड ट्रंप इस वार्ता के जरिए व्यक्तिगत श्रेय लेना चाहते हैं और यूक्रेन को मदद देने से बचना चाहते हैं। उनका लक्ष्य यूरोप के बजाय एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपनी सैन्य ताकत बढ़ाना है।
क्या बदलेगा इस वार्ता से वैश्विक समीकरण?
अमेरिका और रूस की इस गुप्त वार्ता ने यूक्रेन को परेशान कर दिया है और चीन को भी असहज कर दिया है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अमेरिका वाकई रूस से किसी समझौते की तरफ बढ़ रहा है, या फिर यह केवल रणनीतिक बातचीत भर थी।
क्या यह बैठक वैश्विक राजनीति का नया अध्याय लिखेगी? या फिर यह केवल एक अस्थायी कूटनीतिक चाल थी? यह आने वाला समय ही बताएगा।